Q. सबसे उचा पद क्या है?
A. सबसे उचे में उचा पद है आत्म पद, इस पद से बड़ा पद पुरे ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई नहीं है, बापूजी भी हमें यही पद देना चाहते है, आत्म पद में स्थिति हो जाने के बाद ज्ञानी को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पद भी तिनके के समान भासता है
Q. सबसे उचा(बड़ा) सुख क्या है?
A. सबसे उचा सुख है आत्म साक्षात्कार के बाद ब्राह्मी स्थिति/आत्म पद में स्थिति का सुख, चाहे बाह्य(बाहर) जगत में प्रलय ही क्यों ना हो जाय आत्म पद में स्तिथ ज्ञानवान को उस से शोक नहीं होता| सेठों से कई गुना सुख राजों को होता है, राजों से १०० गुना सुख चक्रवर्ती राजा को (पूरी पृथ्वी का राजा) होता है, चक्रवर्ती से १०० गुना सुख गंदर्वो को होता है, गंदर्वों से १०० गुना सुख देवताओं को होता है, देवताओं से १०० गुना सुख देवताओं के राजा इन्द्र को होता है, ऐसा इन्द्र भी अपने आपको ब्रह्मज्ञानी के आगे छोटा मानता है (एकांत वासी वीतराग मुनि को जो सुख होता है वो देवताओं और इन्द्र को भी नहीं होता, तो फिर चक्रवर्तियों की तो बात ही क्या - गुरु गीता में से)
प्रेचेताओं (दो बहनें) की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रगट हुए और वर मांगने को कहा, तब प्रचेताओं ने उनसे भगवान विष्णु के दर्शन की इच्छा जताई, भगवान विष्णु ने प्रेचेताओं को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा तब प्रचेताओं ने कहा भगवान हम मांगने में गलती कर सकते है आप जो ठीक समजें वही दें तब भगवाने उनके ह्रदय में से माया को हटा दिया और उनके ह्रदय में ब्रह्मज्ञान प्रगट कर दिया - अब आप ही सोचिये अगर इससे उचा भी कुछ होता तो भगवान उन्हें वो न देते? प्रत्येक मनुष्य की मांग है ऐसा सुख जो कभी न मीटे तो भगवान ने ऐसा कुछ बनाया भी तो होगा, वह सुख कीसी पदार्थ में नहीं, आत्मज्ञान में है जो भगवान ने प्रचेताओं को कराया, एक बार आत्मज्ञान हो जाए फिर मन में कभी न मिटने वाला आनंद सदा रहता है फिर आपको सुख के लिए कुछ करना, खाना/पीना, भोगना या मेहनत्त नहीं करनी पड़ती, सहज में सुख ह्रदय में सदारहता है, फिर अपमान, दुःख, चिंताएं आपको नहीं छू सकतें, जो भी होता है बाह्य जगत में होता है आप सदा आत्म पद में निर्लेप रहते है, फिर कर्म अकर्म भी आप पर लागू नहीं पड़ता क्योंकि आप साक्षी भाव में रहते है सदा - ऐसी महिमा है आत्मज्ञान की, तो फिर क्यों बापूजी से यह छोड़कर कुछ और मांगना?
Q. आत्म साक्षात्कार किसे कहते है?
A. आत्म साक्षात्कार एक स्थिति है जिसमे हम अपने आपको शरीर नहीं आत्म जानते है, फिर सुख दुःख मान अपमान के थपेड़े नहीं लगते, मन परम विश्रांति में रहता है बापूजी भी यही चाहते है की उनके प्यारे उस परम पद को पाके सभी दुखों से सदा के लिए पार हो जायें
Q. ऐसा क्या है जिसको पाने के बाद दुखों की कोई दाल नहीं गलती ?
A. आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्राह्मी स्थिति [साक्षात्कार के बाद की स्थिति], तत्व ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान यह सभी शब्द समानार्थी है)
Q.बापूजी के अनुसार हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
A. आत्म साक्षात्कार/ब्राह्मी स्थिति(आत्म ज्ञान होने के बाद कीस्थिति को ब्राह्मी स्थिति कहते है) "हे सुमुखी, आत्मा मेंगुरुबुधि के सिवाय अन्य कुछ भी सत्य नहीं है, इसलिए इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुधीमानो को प्रयत्न करना चाहिए" (गुरु गीता श्लोक न. २२)
Q. बापूजी क्या चाहते है हमारे लिए?
A. बापूजी चाहते है की हम सब जल्द से जल्द आत्म साक्षात्कार करके ब्राह्मी स्थिति में टिक जायें और सभी दुखों से सदा के लिए मुक्त हो जायें
Q. सभी सेवाओ, साधनाओ, यज्ञो, सत्कर्मो, पुण्यों का परम फल क्या है?
A. आत्म साक्षात्कार, इससे उचा फल/लाभ पृथ्वी पर दुसरा कोई नहीं, आत्म लाभ की बराबरी दूसरा कोई लाभ नहीं कर सकता
Q. सारे सत्संगो का सार क्या है?
A. सभी सत्संगो का सार यही है की हम उस परम पद(आत्म पद) को पालें, उस इतने उचे पद को छोड़ कर क्यों दो कोडी के सुख के पीछे बागना, एक बार आत्म साक्षात्कार हो जाए फिर दुःख टिकेगा नहीं और सुख मिटेगा नहीं, इस्सिलिये पाने योग्य सिर्फ यही है बाकी सब धोखा ही है, बाकी जो भी मिला छुट जाएगा, इसीलिए अपनी बुधी का उपयोग करें और आत्मज्ञान के रास्ते पर चल पड़ें
Q. कैसे हो आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्रह्म ज्ञान, ब्राह्मीस्थिति, तत्व ज्ञान)?
A. बिना सेवा के गुरुकृपा नहीं पचेगी, मुफ्त का माल हजम नहीं होगा, और बिना गुरुकृपा के आत्म ज्ञान/साक्षात्कार नहीं हो सकता, सेवा dundiye बापूजी कहते है हम में जो भी योग्यता है उसे सेवा में लगा देना है बस, नया कुछ नहीं करना/सीखना
Q. कब होगा आत्म साक्षात्कार?
A. तड़प जीतनी ज्यादा समय उतना ही कम
Q. बापूजी को आत्म साक्षात्कार कब हुआ?
A."आसो सूद दो दिवस, संवत बीस इकीस, मद्यान दाई बजे मिला इस से इस, देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निसार हुआ आत्म से तभी हुआ अपना साक्षात्कार" "पूरण गुरुकृपा मिली पूर्ण गुरु का ज्ञान, आसुमल से हो गए साईं आसाराम" बापूजी जब २३ साल की उम्र में मुंबई गए थे ४० दिन के अनुष्ठान के बाद तब स्वामी लीलाशाहजीने उनपर कृपा दृष्टी दाल कर उनके ह्रदय में आत्मज्ञान प्रगट कर दिया और बापूजी को सदा के लिय मुक्त कर दिया
Q. दीक्षा लिए इतना समय होगया अभी तक साक्षात्कार क्यों नहीं हुआ?
A. आत्म साक्षात्कार तब होगा जब हमारा ह्रदय शुद्ध होगा, अशुद्ध ह्रदय में यह ज्ञान नहीं ठहरता और गुरुकृपा पचाने की पात्रता होगी तब पचेगा, बस ह्रदय की शुधी, पात्रता और ईमानदारी से उदेश्य होना चाहिए
Q. कैसे हो ह्रदय की शुधी?
A. सेवा और साधना से ह्रदय शुद्ध होगा और अन्तः करण का निर्माण होगा तभी यह ज्ञान ह्रदय में टिकेगा
सभी सत्संगों, गीताओं, वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों का सार
Q. कोई Short-cut है क्या?
A. अगर बापूजी के सीद्दे सानिद्य्य में रहकर साधना करे फिर तो कहना ही क्या, फिर तो जल्द ही काम बन सकता है, और बापूजी भी ऐसे ही पात्र dundte हैं जो जल्द ही यह ज्ञान पा सकें और बापूजी उन्हें अपने गुरुदेव का प्रसाद दे सकें
Dyan रहे आत्म पद इस ब्रह्माण्ड में सबसे उचा पद है यह किसी ऐरे गैर्रे नथू थैर्रे के लिए नहीं है, इसे तो कोई सत पात्र सत शिष्य ही पा सकता है,
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