आइना तेरा मन टटोल रहा है,
तू गिर न जाए अपनी नजरो से,
इसलिए तुझ से झूठ बोल रहा है
आइने के सामने भी तू नहीं मिल पाता खुद से,
दूर है तू कितना खुद से,
ये सच आइना खोल रहा है
खुदा के सामने कैसे जायेगा तू बता,
जब आईने के सामने ही
तेरा मन डोल रहा है
ज़िन्दगी हसरतों से परे है, मेरे दोस्त
और तू है की ज़िन्दगी को
हसरतों के तराजू में तोल रहा है
खुद को इस कदर बदल दे,
के लगे दुश्मन भी दोस्त बनकर
ज़िन्दगी में रस घोल रहा है ...
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हरि ॐ
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