Tuesday, October 19, 2010

Often

प्रायः प्रत्येक मनुष्य की यही भावना रहती है कि 'मैं सदैव सुखी रहूँ, कदापि दुःखी न होऊँ।' किंतु भैया ! सुख-दुःख आकाश से नहीं गिरता। अपने विचार ही मनुष्य को सुखी-दुःखी करते हैं। कोई खुशी के वातावरण में खूब मग्न हो, परंतु उसी समय यदि उसके मन में कोई दुःख का विचार आ गया तो वह उदास हो जायेगा।

अतः हे प्रिय ! यदि तुम सदैव प्रसन्न रहना चाहते हो तो यह अदभुत मंत्र याद रखो। 'यह भी बीत जायेगा।' इसे सदा के लिए अपने हृदय पटल पर अंकित कर दो। यह वह मंत्र है, जिसके अभ्यास से मनुष्य सुख-दुःख के समय स्वयं को सँभालकर सावधान हो सकता है और उसमें फँसने से बच सकता है, समरसता के परम सुख में प्रतिष्ठित हो सकता है।

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