कोई वैश्य भक्त खूब आदर-भाव से साधु-संतो की सेवा करता था। घूमते-घामते कोई त्रिकाल ज्ञानी संत उसके घर में अतिथि हो गये। भक्त की भक्ति-भावना देखकर उनका चित्त प्रसन्न हुआ। उन्होंने भक्त के नन्हें-मुन्ने बेटे की हस्तरेखा देखी और कहाः "भक्तराज ! तुम्हारे बेटे की रेखाएँ ऐसा कह रही हैं कि इसके भाग्य में पाँच रूपये और गधा सदा रहेगा।" भक्त ने कहाः "जो भी रहे, स्वामी जी ! प्रारब्ध वेग से हर जीव आता है। उसके भाग्य जो हो, सो ठीक है। जैसी प्रभु की मर्जी !" पन्द्रह साल के बाद वे बाबाजी घूमते घामते फिर उसी भक्त के द्वार पर पधारे। भक्त तो देव हो गये थे, उनका बेटा घर पर था। जवान हो गया था और धन्धा कर रहा था। बाबाजी ने कहाः "तुम्हारे पिताजी बड़े साधुसेवी थे, भक्त थे। हम पहले भी आ चुके है। इस बार भी दो-चार दिन यहाँ रहना चाहते हैं।" बेटा भी बड़ा संतप्रेमी था। उत्साह से वह बोलाः "हाँ हाँ महाराज ! खूब आनन्द से रहिए, कृपा कीजिए। यह घर आप ही की सेवा के लिए है। हमारा अहोभाग्य है कि आप जैसे संत- महात्मा की चरणरज से यह आँगन पावन हुआ।" वह लड़का कुछ भी धन्धा करता, कमाता तो उसके पास आय-व्यय में जमा-उधार करके पाँच रूपये और एक गधा बचता था। बाबाजी आये, भोजन-पानी का खर्च बढ़ा फिर भी आखिर में पाच रूपये और गधा ही बचा। बाबाजी ने कहाः "तेरे पास जो पाँच रूपये हैं उसका भण्डारा कर दे। अन्य साधु-संतों को भोजन करा दे।" उसने पाँच रूपये का भण्डारा कर दिया। दूसरे दिन भी कमाया और खर्च किया तो पाँच रूपये और गधा बचा। बाबाजी ने कहाः "यह गधा बेच दे और पाँच रूपये भी खर्च कर डाल।" उसने वैसा ही किया। शाम को उसके पास कुछ न रहा। सुबह उठा तो सामने कोई व्यक्ति मिला और बोलाः ''रात को मुझे एक स्वप्न आया और किसी देव ने कहा कि सुबह-सुबह जो कोई मिले उसको
पाँच रूपये और गधा भेंट कर दो। अब कृपा करके आप इसे स्वीकार करो।" लड़के ने जाकर बाबाजी को बताया। बाबाजी बोलेः "यह तो देव को करना ही पड़ेगा।
तेरे भाग्य में लिखा है तो देव को व्यवस्था करनी ही पड़ेगी।" "बाबाजी !
अब क्या करूँ ?" "तेरे पास जो कुछ आवे उसे खर्च कर दे, दान कर दे। कुछ भी कर, लेकिन अपने पास कुछ मत रख।" वह लड़का ऐसा ही करने लगा। वह रोज-रोज सब लुटा देता और दूसरे दिन पाँच रूपये और गधा उसे मिल ही जाता। प्रतिदिन ऐसा होने लगा। आखिर उस लड़के का भाग्य साकार रूप लेकर बाबाजी के सामने प्रकट हो गया और बोलाः "यह कैसी युक्ति आपने लड़ाई ! हमारी नाक में दम आ गया इसके पाँच रूपये और गधे की व्यवस्था करने में। वह लुटा देता है और मुझे किसी-न-किसी को निमित्त बना कर उसे पाँच रूपये और गधा दिलाना पड़ता है।
कृपा करके आप ऐसी सीख इसको मत दीजिए। लोगों को प्रेरणा रते-करते और इसका बैलेन्स ठीक रखते-रखते हम थक गये।" बाबाजी ने कहाः "तो इसका इतना छोटा ‘बैलेन्स’ क्यों बनाया ? बड़ा बना दो।" भाग्य ने अपनी हार स्वीकार कर ली।
लड़के का भाग्य श्रीमंत सेठ की नाईं हो गया। इस कहानी से पता चलता है कि जो अवश्यंभावी है, वह होकर ही रहता है। जो खान-पान, पत्नी-पुत्र-परिवार, धन-यश आदि जो प्रारब्ध में होगा, वह आकर ही रहेगा तो हम उसकी कामना क्यों करें ? कामना करके अपनी इज्जत क्यों बिगाड़ें ? जो होना है सो होना है, जो पाना है सो पाना है, जो खोना है सो खोना है। सब सूत्र प्रभु के हाथों में.... नाहक करनी का बोझ उठाना ?
mast hai mera nama abhishek hai main prabhu shri ram chandra ji or prabhu hanuman ji ki bhakti karta hu tho mujhe kuch hindi language main prabhu shri ram chandra ji or prabhu hanuman ji ke bare main padhna hai
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