Tuesday, October 19, 2010

Enjoy the little things

Enjoy the little things, for one day you may look back and realize they were the big things.

You have to pay twice for a cigarettes -- once when you get them, and again when they get you.

An insincere and evil friend is more to be feared than a wild beast: a wild beast may wound your body, but an evil friend will wound your mind..

You must not lose faith in humanity. Humanity is an ocean; if a few drops of the ocean are dirty, the ocean itself does not become dirty.

Happiness is only found by those who are striving to make others happy.

Heated gold becomes ornaments. Betted copper becomes wires. Depleted stone becomes statue. So, the more pain you get in your life the more valuable you become.

एक

एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी गलती नहीं की है, उसने जीवन में कुछ नया करने का कभी प्रयास ही नहीं किया होता है.

मूर्ख व्यक्ति स्वयं को बुद्धिमान मानता है लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं को मूर्ख मानता है

एक चीज जो रीसाइकल नहीं की जा सकती, वह है वेस्ट किया हुआ टाइम।

पेड़ हमें सिखाते हैं कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखें। पेड़ जमीन में मजबूती से जमे होते हैं और इसके साथ ही आसमन को छूने की कोशिश भी करते हैं।

जो खो दिया , उसे मत गिनो। देखो कि अब तुम्हारे पास क्या है। क्योंकि जो बीत गया वह कभी नहीं लौटता , लेकिन भविष्य हमें खोई हुई चीजें दिला सकता है।

हां' और 'न' ये दो शब्द ऐसे हैं, जिन्हें बोलने से पहले काफी सोचना चाहिए। जिंदगी में ज्यादातर समस्याएं इन दो वजहों से हैं- 'हां' बहुत जल्दी कह देना और 'न' कहने में बहुत ज्यादा समय लेना।

एक मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान बन जाता है जैसे ही वह यह समझने लगता है कि वह मूर्ख है। एक जीनियस मूर्ख बन जाता है जैसे ही वह यह मानने लगता है कि वह जीनियस है।

Any Fault

कोई गलती न करना मनुष्य के बूते की बात नहीं है, लेकिन अपनी त्रुटियों और गलतियों से समझदार व्यक्ति भविष्य के लिए बुद्धिमत्ता अवश्य सीख लेते हैं

किसी जंगली जानवर की तुलना में निष्ठाहीन तथा बुरी प्रवृतियों वाले मित्र से अधिक डरना चाहिए क्योंकि जंगली जानवर आपके शरीर को चोट पहुंचाएगा लेकिन बुरा मित्र तो आपके मन-मस्तिष्क को घायल करेगा.

जब टूटने लगे होंसले तो इतना याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो-ताज नहीं होते, ढूंढ़ ही लेते है अँधेरे में मंजिल अपनी, जुगनू रौशनी के मोहताज़ नहीं होते.

किसी सेठ के पास एक नौकर गया। सेठ ने पूछाः "रोज के कितने रुपये लेते हो?"
नौकरः "बाबू जी ! वैसे तो आठ रूपये लेता हूँ। फिर आप जो दे दें।"
सेठः "ठीक है, आठ रुपये दूँगा। अभी तो बैठो। फिर जो काम होगा, वह बताऊँगा।"
सेठ जी किसी दूसरे काम में लग गये। उस नये नौकर को काम बताने का मौका नहीं मिल पाया। जब शाम हुई तब नौकर ने कहाः "सेठ जी! लाइये मेरी मजदूरी।"
सेठः "मैंने काम तो कुछ दिया ही नहीं, फिर मजदूरी किस बात की?"
नौकरः "बाबू जी ! आपने भले ही कोई काम नहीं बताया किन्तु मैं बैठा तो आपके लिए ही रहा।"
सेठ ने उसे पैसे दे दिये। जब साधारण मनुष्य के लिए खाली-खाली बैठे रहने पर भी वह मजदूरी दे देता है तो परमात्मा के लिए खाली बैठे भी रहोगे तो वह भी तुम्हें दे ही देगा। 'मन नहीं लगता.... क्या करें?' नहीं, मन नहीं लगे तब भी बैठकर जप करो, स्मरण करो। बैठोगे तो उसके लिए ही न? फिर वह स्वयं ही चिंता करेगा।

Life Experience

पूरा जीवन एक अनुभव है. जितना अधिक आप प्रयोग करते हैं, उतना ही इसे बेहतर बनाते हैं

Once Upon A Time

Once Buddha was walking from one town to another town with a few of his followers. This was in the initial days. While they were traveling, they happened to pass a lake. They stopped there and
Buddha told one of his disciples, “I am thirsty. Do get me some water from that lake there.”

The disciple walked up to the lake.
When he reached it, he noticed that right at that moment, a bullock cart started crossing through the lake. As a result, the water became very muddy, very turbid.
The disciple thought, “How can I give this muddy water to Buddha to drink!” So he came back and told Buddha, “The water in there is very muddy. I don’t think it is fit to drink.”

After about half an hour, again Buddha asked the same disciple to go back to the lake and get him some water to drink. The disciple obediently went back to the lake.

This time he found that the lake had absolutely clear water in it. The mud had settled down and the water above it looked fit to be had. So he collected some water in a pot and brought it to Buddha.

Buddha looked at the water, and then he looked up at the disciple and said,“See what you did to make the water clean. You let it be…. and the mud settled down on its own – and you got clear water. Your mind is also like that! When it is disturbed, just let it be. Give it a little time. It will settle down on its own. You don’t have to put in any effort to calm it down. It will happen. It is effortless.”

What did Buddha emphasize here?
He said, “It is effortless.” Having ‘Peace of Mind’ is not a strenuous job;
it is an effortless process!

Have a peaceful Life !

Thought

यदि हम असफलता से शिक्षा प्राप्त करते हैं तो वह सफलता ही है
Though no one can go back and make a brand new start my friend, anyone can start from now and make a brand new end.

The best way to make your dreams come true is to wake up.

वो रोये

वो रोये तो बहुत मगर मुझसे मुंह मोड़कर रोये,

कोई तो मजबूरी रही होगी जो दिल मेरा तोड़कर रोये,

मेरे ही सामने कर दिए मेरी तस्वीर के टुकडे,

पता चला मेरे पीछे वो उन्हें जोड़कर रोये

Action is not a matter of right and wrong

Action is not a matter of right and wrong. It is only when action is partial, not total, that there is right and wrong.

हर बात

हर बात में धीरज रखें, विशेषकर अपने आप से. अपनी कमियों को लेकर धैर्य न खोएं अपितु तुरन्त उनका समाधान करना शुरू करें – हर दिन कर्म की नई शुरुआत है.

साहस

साहस और दृढ़ निश्चय जादुई तावीज़ हैं जिनके आगे कठिनाईयां दूर हो जाती हैं और बाधाएं उड़न-छू हो जाती है

Make no little plans

Make no little plans; they have no magic to stir men's blood...Make big plans, aim high in hope and work.

An old wise man

An old wise man was sitting on a branch on the outskirts of a small village in Northern India.

A traveler passing by approached him and asked,
"Sir, how are the people in this village? I am planning to migrate From my village and settle in some good village…"

The old man asked him " How are the people in your village?"

The traveler replied," Very Selfish, rigid and cunning…….."

The wise man promptly told him, " Young man, in this village also you will only find cunning, self and rigid people!"


A little later, another traveler was passing by. He too asked the same question to the old man.
The old man asked him " How are the people in your village?"

The traveler answered, ‘The people in my village are very loving, kind and generous."

The old man replied back, "…then you will also find the same kind people here…………"


***

The Moral is v find people everywhere as we are...we are bad we find bad people....we are good we find good people...

आइना तेरा मन

आइना तेरा मन टटोल रहा है,
तू गिर न जाए अपनी नजरो से,
इसलिए तुझ से झूठ बोल रहा है

आइने के सामने भी तू नहीं मिल पाता खुद से,
दूर है तू कितना खुद से,
ये सच आइना खोल रहा है

खुदा के सामने कैसे जायेगा तू बता,
जब आईने के सामने ही
तेरा मन डोल रहा है

ज़िन्दगी हसरतों से परे है, मेरे दोस्त
और तू है की ज़िन्दगी को
हसरतों के तराजू में तोल रहा है

खुद को इस कदर बदल दे,
के लगे दुश्मन भी दोस्त बनकर
ज़िन्दगी में रस घोल रहा है ...

***

हरि ॐ

अपने कष्ट

अपने कष्ट के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराना सबसे बड़ी भ्रान्ति है| दूसरे के अवगुणों और अपने गुणों पर ध्यान मत दो| जो अपने लिए कुछ नहीं चाहता, उस व्यक्ति को सब पसंद करते हैं

भक्तराज

कोई वैश्य भक्त खूब आदर-भाव से साधु-संतो की सेवा करता था। घूमते-घामते कोई त्रिकाल ज्ञानी संत उसके घर में अतिथि हो गये। भक्त की भक्ति-भावना देखकर उनका चित्त प्रसन्न हुआ। उन्होंने भक्त के नन्हें-मुन्ने बेटे की हस्तरेखा देखी और कहाः "भक्तराज ! तुम्हारे बेटे की रेखाएँ ऐसा कह रही हैं कि इसके भाग्य में पाँच रूपये और गधा सदा रहेगा।" भक्त ने कहाः "जो भी रहे, स्वामी जी ! प्रारब्ध वेग से हर जीव आता है। उसके भाग्य जो हो, सो ठीक है। जैसी प्रभु की मर्जी !" पन्द्रह साल के बाद वे बाबाजी घूमते घामते फिर उसी भक्त के द्वार पर पधारे। भक्त तो देव हो गये थे, उनका बेटा घर पर था। जवान हो गया था और धन्धा कर रहा था। बाबाजी ने कहाः "तुम्हारे पिताजी बड़े साधुसेवी थे, भक्त थे। हम पहले भी आ चुके है। इस बार भी दो-चार दिन यहाँ रहना चाहते हैं।" बेटा भी बड़ा संतप्रेमी था। उत्साह से वह बोलाः "हाँ हाँ महाराज ! खूब आनन्द से रहिए, कृपा कीजिए। यह घर आप ही की सेवा के लिए है। हमारा अहोभाग्य है कि आप जैसे संत- महात्मा की चरणरज से यह आँगन पावन हुआ।" वह लड़का कुछ भी धन्धा करता, कमाता तो उसके पास आय-व्यय में जमा-उधार करके पाँच रूपये और एक गधा बचता था। बाबाजी आये, भोजन-पानी का खर्च बढ़ा फिर भी आखिर में पाच रूपये और गधा ही बचा। बाबाजी ने कहाः "तेरे पास जो पाँच रूपये हैं उसका भण्डारा कर दे। अन्य साधु-संतों को भोजन करा दे।" उसने पाँच रूपये का भण्डारा कर दिया। दूसरे दिन भी कमाया और खर्च किया तो पाँच रूपये और गधा बचा। बाबाजी ने कहाः "यह गधा बेच दे और पाँच रूपये भी खर्च कर डाल।" उसने वैसा ही किया। शाम को उसके पास कुछ न रहा। सुबह उठा तो सामने कोई व्यक्ति मिला और बोलाः ''रात को मुझे एक स्वप्न आया और किसी देव ने कहा कि सुबह-सुबह जो कोई मिले उसको

पाँच रूपये और गधा भेंट कर दो। अब कृपा करके आप इसे स्वीकार करो।" लड़के ने जाकर बाबाजी को बताया। बाबाजी बोलेः "यह तो देव को करना ही पड़ेगा।
तेरे भाग्य में लिखा है तो देव को व्यवस्था करनी ही पड़ेगी।" "बाबाजी !

अब क्या करूँ ?" "तेरे पास जो कुछ आवे उसे खर्च कर दे, दान कर दे। कुछ भी कर, लेकिन अपने पास कुछ मत रख।" वह लड़का ऐसा ही करने लगा। वह रोज-रोज सब लुटा देता और दूसरे दिन पाँच रूपये और गधा उसे मिल ही जाता। प्रतिदिन ऐसा होने लगा। आखिर उस लड़के का भाग्य साकार रूप लेकर बाबाजी के सामने प्रकट हो गया और बोलाः "यह कैसी युक्ति आपने लड़ाई ! हमारी नाक में दम आ गया इसके पाँच रूपये और गधे की व्यवस्था करने में। वह लुटा देता है और मुझे किसी-न-किसी को निमित्त बना कर उसे पाँच रूपये और गधा दिलाना पड़ता है।

कृपा करके आप ऐसी सीख इसको मत दीजिए। लोगों को प्रेरणा रते-करते और इसका बैलेन्स ठीक रखते-रखते हम थक गये।" बाबाजी ने कहाः "तो इसका इतना छोटा ‘बैलेन्स’ क्यों बनाया ? बड़ा बना दो।" भाग्य ने अपनी हार स्वीकार कर ली।

लड़के का भाग्य श्रीमंत सेठ की नाईं हो गया। इस कहानी से पता चलता है कि जो अवश्यंभावी है, वह होकर ही रहता है। जो खान-पान, पत्नी-पुत्र-परिवार, धन-यश आदि जो प्रारब्ध में होगा, वह आकर ही रहेगा तो हम उसकी कामना क्यों करें ? कामना करके अपनी इज्जत क्यों बिगाड़ें ? जो होना है सो होना है, जो पाना है सो पाना है, जो खोना है सो खोना है। सब सूत्र प्रभु के हाथों में.... नाहक करनी का बोझ उठाना ?

Often

प्रायः प्रत्येक मनुष्य की यही भावना रहती है कि 'मैं सदैव सुखी रहूँ, कदापि दुःखी न होऊँ।' किंतु भैया ! सुख-दुःख आकाश से नहीं गिरता। अपने विचार ही मनुष्य को सुखी-दुःखी करते हैं। कोई खुशी के वातावरण में खूब मग्न हो, परंतु उसी समय यदि उसके मन में कोई दुःख का विचार आ गया तो वह उदास हो जायेगा।

अतः हे प्रिय ! यदि तुम सदैव प्रसन्न रहना चाहते हो तो यह अदभुत मंत्र याद रखो। 'यह भी बीत जायेगा।' इसे सदा के लिए अपने हृदय पटल पर अंकित कर दो। यह वह मंत्र है, जिसके अभ्यास से मनुष्य सुख-दुःख के समय स्वयं को सँभालकर सावधान हो सकता है और उसमें फँसने से बच सकता है, समरसता के परम सुख में प्रतिष्ठित हो सकता है।

Gum

"Gum ki andheri raat me na dil ko bekarar kar woh subah jaroor aayegi tu subah ka intezaar kar"

Ramakrishna Paramhansa Dying

Ramakrishna Paramhansa Dying (leaving body) from Cancer
Ramakrishna was dying.

He had cancer of the throat, and in his last days it became impossible for him even to drink water.

Vivekananda said to him, ”Bhagwan, can’t you ask God to do you just a little favor? If you simply ask God that at least you should be allowed to eat and drink it is bound to happen. It is becoming too great a suffering for your body – and not only for your body but for us all. We cannot eat because we know you cannot eat. It has become impossible for us to drink because we know you cannot drink. How can we drink? So if you don’t care about yourself, okay, but think of us – we are also suffering. Just for our sake close your eyes and say to God, ’Do me just a small favor.’”

Ramakrishna closed his eyes, opened them and started laughing. He said, ”You fool! If I listen to your advice God will laugh at me. I asked him....”

That was his way. He had not asked – there is nobody to ask – that was his way. He would not hurt Vivekananda. He closed his eyes, he may have even moved his lips to show Vivekananda that he was praying to God.

And then he opened his eyes and he said, ”God laughed at me and he said, ’Ramakrishna, you are listening to these fools? You follow their advice? Are they your disciples or are you their disciple? Who is who? You have eaten with this throat for so many years – can’t you now eat and drink with the throats of your disciples?’

” And Ramakrishna said, ”Vivekananda, his argument appeals to me. So stop torturing yourself, suffering, because now that I have lost my throat, I have to depend on your throats. Eat as much as you can – a little more than usual, because a part of it has to go to me. Drink a little more than usual because there will be my share, too. So eat, drink and rejoice, because God has said, ’Ramakrishna, you can eat through your disciples’ bodies. Why depend on this body? And this body is gone and rotten!’ ”

ACHI BATEIN

1.Us Se Dosti Na Karo Jise Khud Per Ghroor Ho

2.Maa Baap Ko Bura Mat Jano Chahy Lakh Un Ka Kasoor Ho,

3.Bure Raste Mat Jao Chahy Kitni Bhi Manzil Door Ho,

4.Rah Chalte Ko Dil Mat Do Chahy Lakh Monh Per Noor Ho,

5.Pyar Ki Baat Wahan Karo Jahan Pyar Nibhane Ka Dastoor Ho.

What is the High Position

Q. सबसे उचा पद क्या है?
A. सबसे उचे में उचा पद है आत्म पद, इस पद से बड़ा पद पुरे ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई नहीं है, बापूजी भी हमें यही पद देना चाहते है, आत्म पद में स्थिति हो जाने के बाद ज्ञानी को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पद भी तिनके के समान भासता है


Q. सबसे उचा(बड़ा) सुख क्या है?
A. सबसे उचा सुख है आत्म साक्षात्कार के बाद ब्राह्मी स्थिति/आत्म पद में स्थिति का सुख, चाहे बाह्य(बाहर) जगत में प्रलय ही क्यों ना हो जाय आत्म पद में स्तिथ ज्ञानवान को उस से शोक नहीं होता| सेठों से कई गुना सुख राजों को होता है, राजों से १०० गुना सुख चक्रवर्ती राजा को (पूरी पृथ्वी का राजा) होता है, चक्रवर्ती से १०० गुना सुख गंदर्वो को होता है, गंदर्वों से १०० गुना सुख देवताओं को होता है, देवताओं से १०० गुना सुख देवताओं के राजा इन्द्र को होता है, ऐसा इन्द्र भी अपने आपको ब्रह्मज्ञानी के आगे छोटा मानता है (एकांत वासी वीतराग मुनि को जो सुख होता है वो देवताओं और इन्द्र को भी नहीं होता, तो फिर चक्रवर्तियों की तो बात ही क्या - गुरु गीता में से)

प्रेचेताओं (दो बहनें) की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रगट हुए और वर मांगने को कहा, तब प्रचेताओं ने उनसे भगवान विष्णु के दर्शन की इच्छा जताई, भगवान विष्णु ने प्रेचेताओं को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा तब प्रचेताओं ने कहा भगवान हम मांगने में गलती कर सकते है आप जो ठीक समजें वही दें तब भगवाने उनके ह्रदय में से माया को हटा दिया और उनके ह्रदय में ब्रह्मज्ञान प्रगट कर दिया - अब आप ही सोचिये अगर इससे उचा भी कुछ होता तो भगवान उन्हें वो न देते? प्रत्येक मनुष्य की मांग है ऐसा सुख जो कभी न मीटे तो भगवान ने ऐसा कुछ बनाया भी तो होगा, वह सुख कीसी पदार्थ में नहीं, आत्मज्ञान में है जो भगवान ने प्रचेताओं को कराया, एक बार आत्मज्ञान हो जाए फिर मन में कभी न मिटने वाला आनंद सदा रहता है फिर आपको सुख के लिए कुछ करना, खाना/पीना, भोगना या मेहनत्त नहीं करनी पड़ती, सहज में सुख ह्रदय में सदारहता है, फिर अपमान, दुःख, चिंताएं आपको नहीं छू सकतें, जो भी होता है बाह्य जगत में होता है आप सदा आत्म पद में निर्लेप रहते है, फिर कर्म अकर्म भी आप पर लागू नहीं पड़ता क्योंकि आप साक्षी भाव में रहते है सदा - ऐसी महिमा है आत्मज्ञान की, तो फिर क्यों बापूजी से यह छोड़कर कुछ और मांगना?


Q. आत्म साक्षात्कार किसे कहते है?
A. आत्म साक्षात्कार एक स्थिति है जिसमे हम अपने आपको शरीर नहीं आत्म जानते है, फिर सुख दुःख मान अपमान के थपेड़े नहीं लगते, मन परम विश्रांति में रहता है बापूजी भी यही चाहते है की उनके प्यारे उस परम पद को पाके सभी दुखों से सदा के लिए पार हो जायें


Q. ऐसा क्या है जिसको पाने के बाद दुखों की कोई दाल नहीं गलती ?
A. आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्राह्मी स्थिति [साक्षात्कार के बाद की स्थिति], तत्व ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान यह सभी शब्द समानार्थी है)


Q.बापूजी के अनुसार हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
A. आत्म साक्षात्कार/ब्राह्मी स्थिति(आत्म ज्ञान होने के बाद कीस्थिति को ब्राह्मी स्थिति कहते है) "हे सुमुखी, आत्मा मेंगुरुबुधि के सिवाय अन्य कुछ भी सत्य नहीं है, इसलिए इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुधीमानो को प्रयत्न करना चाहिए" (गुरु गीता श्लोक न. २२)



Q. बापूजी क्या चाहते है हमारे लिए?
A. बापूजी चाहते है की हम सब जल्द से जल्द आत्म साक्षात्कार करके ब्राह्मी स्थिति में टिक जायें और सभी दुखों से सदा के लिए मुक्त हो जायें


Q. सभी सेवाओ, साधनाओ, यज्ञो, सत्कर्मो, पुण्यों का परम फल क्या है?
A. आत्म साक्षात्कार, इससे उचा फल/लाभ पृथ्वी पर दुसरा कोई नहीं, आत्म लाभ की बराबरी दूसरा कोई लाभ नहीं कर सकता


Q. सारे सत्संगो का सार क्या है?
A. सभी सत्संगो का सार यही है की हम उस परम पद(आत्म पद) को पालें, उस इतने उचे पद को छोड़ कर क्यों दो कोडी के सुख के पीछे बागना, एक बार आत्म साक्षात्कार हो जाए फिर दुःख टिकेगा नहीं और सुख मिटेगा नहीं, इस्सिलिये पाने योग्य सिर्फ यही है बाकी सब धोखा ही है, बाकी जो भी मिला छुट जाएगा, इसीलिए अपनी बुधी का उपयोग करें और आत्मज्ञान के रास्ते पर चल पड़ें


Q. कैसे हो आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्रह्म ज्ञान, ब्राह्मीस्थिति, तत्व ज्ञान)?
A. बिना सेवा के गुरुकृपा नहीं पचेगी, मुफ्त का माल हजम नहीं होगा, और बिना गुरुकृपा के आत्म ज्ञान/साक्षात्कार नहीं हो सकता, सेवा dundiye बापूजी कहते है हम में जो भी योग्यता है उसे सेवा में लगा देना है बस, नया कुछ नहीं करना/सीखना


Q. कब होगा आत्म साक्षात्कार?
A. तड़प जीतनी ज्यादा समय उतना ही कम



Q. बापूजी को आत्म साक्षात्कार कब हुआ?
A."आसो सूद दो दिवस, संवत बीस इकीस, मद्यान दाई बजे मिला इस से इस, देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निसार हुआ आत्म से तभी हुआ अपना साक्षात्कार" "पूरण गुरुकृपा मिली पूर्ण गुरु का ज्ञान, आसुमल से हो गए साईं आसाराम" बापूजी जब २३ साल की उम्र में मुंबई गए थे ४० दिन के अनुष्ठान के बाद तब स्वामी लीलाशाहजीने उनपर कृपा दृष्टी दाल कर उनके ह्रदय में आत्मज्ञान प्रगट कर दिया और बापूजी को सदा के लिय मुक्त कर दिया


Q. दीक्षा लिए इतना समय होगया अभी तक साक्षात्कार क्यों नहीं हुआ?
A. आत्म साक्षात्कार तब होगा जब हमारा ह्रदय शुद्ध होगा, अशुद्ध ह्रदय में यह ज्ञान नहीं ठहरता और गुरुकृपा पचाने की पात्रता होगी तब पचेगा, बस ह्रदय की शुधी, पात्रता और ईमानदारी से उदेश्य होना चाहिए


Q. कैसे हो ह्रदय की शुधी?
A. सेवा और साधना से ह्रदय शुद्ध होगा और अन्तः करण का निर्माण होगा तभी यह ज्ञान ह्रदय में टिकेगा
सभी सत्संगों, गीताओं, वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों का सार


Q. कोई Short-cut है क्या?
A. अगर बापूजी के सीद्दे सानिद्य्य में रहकर साधना करे फिर तो कहना ही क्या, फिर तो जल्द ही काम बन सकता है, और बापूजी भी ऐसे ही पात्र dundte हैं जो जल्द ही यह ज्ञान पा सकें और बापूजी उन्हें अपने गुरुदेव का प्रसाद दे सकें


Dyan रहे आत्म पद इस ब्रह्माण्ड में सबसे उचा पद है यह किसी ऐरे गैर्रे नथू थैर्रे के लिए नहीं है, इसे तो कोई सत पात्र सत शिष्य ही पा सकता है,

Jap karne

Jap karne se ek prakar ka abhamandal banta hai, sukshm tej banta hai, sharir me sfurti aati hai, man ekagra hota hai, buddhi tejasvi hoti hai aur Satvagun badhta hai

My friends

अपने मित्र को उसके दोषों को बताना मित्रता की सबसे कठोर परीक्षा होती है

When we

जब हमारे 4,32 ,000 साल पुरे होते है, तब कलियुग समाप्त होता है, 8,64,000 पुरे होते है, तब त्रेतायुग समाप्त होता है, द्वापरयुग का कालावधी 12,96,000 साल का है, सतयुग 17,28,000 साल का है, सब मिल के 43,20,000 साल व्यतीत होता है, तब एक चतुर्युगी पुरी होती है
ऐसे 71 चतुर्युगी समाप्त होते है, तब एक मन्वंतर होता है, ऐसे 14 मन्वंतर समाप्त होते है, तब ब्रम्हदेव का एक दिन होता है, हमारे साठ साल पुरे होते है, तब देवोंके दो महिने समाप्त होते है, हमारा एक साल समाप्त होता है, तब देवों का एक दिन समाप्त होता है, जैसे हमारा एक दिन समाप्त होता है, तब मख्खी, माछारोंका तीन chaturthansh जीवन पुरा होता है, हमारा एक दिन पुरा होता है, तब हमारे रक्त मे जो किटाणू है उनके दस कुल समाप्त होते है.
किटाणू के आगे आप ब्रम्हदेव है, मच्छरो के आगे आप देव है और देवों के आगे हमारा आयुष्य ठीक उतना है जितना हमारे आगे मच्छर और मख्खी का है.
ब्रम्हदेव के सिर्फ एक दिन मे ऐसे चौदा इंद्र बदलते है, इस समय ब्रम्हदेव 50 साल के है, 51 वे साल का पेहला दिन शुरू है, पेहले दिन का आधा भाग खतम हो गाय है, अब ये सातवा मन्वंतर शुरू है

couple of points

1.
why Aajtak team did not take Poonam to Police station directly in first
place? ...2. Aaj tak reporter do not know that Asaram Bapu is not
Kathavachak, he is Brahmagyani Saint


3. Asaram Bapu told Poonam
to start doing Sadhana to get rid of all worries. Any real Saint will
always provide support to people in grief


4. All previous cases against Bapuji had been proved 'FAKE'


5.
Can Aaj tak do sting operation on 'Hey Alla' or 'Hey Jesus'. MAny
Churches are involved into conversion of region. Why Aaj tak have not
done anything against such practices.


Why aaktaj is not raising
voice against Kasab/ Afzal Guru ? No mulla in this conuntry is raising
voice against Kasab/ Afazal Guru? why ?????


It is sad to see hindu people are falling pray to fake critisisam of our own

Hari Om

परमार्थिक, करुण ह्रदय, पावन सनातन हिन्दू संतो पर घटिया मानसिकता का परिचय देकर अपनी TRP के तुच्छ स्वार्थो से प्रेरित आधारहीन मनगणंत और वास्तविकता को अपनी तरह से तोड़ मरोड़कर बार-बार दिखाने तथा कुप्रचार का घटिया तरीका अपनाने वाले आजतक न्यूज चैनल का सभी भाई-बहन तुरंत बहिष्कार करें। अपने सेटटाँप बाक्स के मेन्यू मे जाकर इस न्यूज चैनल को ब्लाक कर दें। जैसे पवित्र ऋषि मुनियो के पावन यज्ञ मे हड्डी और गंदगी ड़ालने वाले दुष्ट राक्षसो को श्रीरामजी और लखनलाला ने नष्ट कर धर्म की स्थापना की, ऐसे ही तुच्छ TRP के तुच्छ स्वार्थो लिये देश और समाज की आस्था को तोड़ने का पाप करने वाले तथा अपने को देश का नं.1 कहलाने वाले इस न्यूज चैनल को अपने और अन्य भाई-बहनो के घर परिवार से बहिष्कृत कर दें। देश-दुनिया की खबर लेने के लिये सेकड़ौ चैनल चल रहे है। जीव को जीवत्व से शिवत्व तक पहुचाकर जन्म-मरण के भवपाश से मुक्त करने वाले गुरुओ को हम क्या दे सकते है? कम से कम ऐसे अपवित्र लक्ष्य बाले न्यूज चैनल के TRP बढ़ाने के घटिया इरादो का हिस्सा न बने और हमेशा के लिये इससे नाता तोड़ कर अपनी गुरुभक्ति, देशभक्ति और पावन सनातन धर्म के प्रति दृण निष्ठा का परिचय दें।

हरि ओम...हरि ओम...हरि ओम।

Confidence

यदि आप में आत्मविश्वास नहीं है तो आप हमेशा न जीतने का बहाना खोज लेंगे

God is in joking mood

A man was praying to God.

He said, "God?"

God responded, "Yes?"

And the Guy said, "Can I ask a question?"

"Go right ahead", God said.

"God, what is a million years to you?"

God said, "A million years to me is only a second."

The man wondered.
Then he asked, "God, what is a million dollars worth to you?"

God said, "A million dollars to me is a penny."

So the man said, "God can I have a penny?"

And God cheerfully said,
"Sure!....... wait just a second.

Text of humanity

एक बार स्वामी विवेकानंद किसी रेलवे स्टेशन पर रुके हुए थे। धीरे-धीरे यह बात आसपास फैल गई और वहां भीड़ जुटने लगी। लोग स्वामी जी से अपनी समस्याओं का समाधान पूछने लगे। लोगों की समस्याओं का समाधान करते हुए स्वामी जी खाना-पीना तक भूल गए। किसी को भी उनके खाने-पीने के बारे में पूछने का ख्याल तक नहीं आया। तीसरे दिन रात में एक निर्धन व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें प्रणाम कर बोला,
'स्वामी जी! आप तीन दिनों से लोगों से बात कर रहे हैं। मैंने आपको कभी खाते-पीते देखा ही नहीं। मैं इससे बहुत दुखी हूं।'
उस निर्धन व्यक्ति की यह बात सुनकर स्वामी विवेकानंद को बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा, 'क्या तुम मुझे कुछ खाने को दोगे?'
यह सुनकर वह व्यक्ति सहमते हुए बोला, 'स्वामी जी। मैं तो सफाई कर्मचारी हूं। निम्न जाति का हूं। आपको अपनी बनाई रोटी कैसे दे सकता हूं? यदि कहें तो मैं कुछ खरीद कर ला दूं।'
स्वामी जी ने कहा, 'बंधु ! तुम मुझे अपनी बनाई रोटी ही दो। मैं तो वही खाऊंगा।'
उस सफाई कर्मचारी के घर की रोटी-दाल स्वामी जी ने बड़े प्रेम से खाई।
कुछ लोगों को यह बात बुरी लगी कि स्वामी जी ने एक सफाई कर्मचारी के हाथ का भोजन खाया है। उन्होंने नाक-भौं सिकोड़ कर स्वामी जी से कहा, 'आप कैसे संन्यासी हैं। आप निम्न वर्ग के एक व्यक्ति के हाथ का बना हुआ खाना खाते हैं।' उन लोगों की बात सुनकर स्वामी जी बोले, 'मैं तीन दिनों से निराहार था। तुम लोगों ने इतने दिनों तक मेरे खाने-पीने की चिंता नहीं की। जबकि यह व्यक्ति सच्चे मन से मेरे पास आया। इसने अपना मानव धर्म निभाया जबकि तुम लोग केवल अपनी समस्याओं तक सीमित रहे। श्रद्धा और प्रेम का धनी यह व्यक्ति तो महान है। और नीच वह है जो इन गुणों से रहित है।'
स्वामी जी का यह कथन सुन कर सभी व्यक्तियों का सिर शर्म से झुक गया।

Belief

आस्था को उत्पन्न किया जाता है बल्कि कहना चाहिए कि अपने अंदर उसे ढूंढा जाता है| आस्था अन्तर्निहित होती है, लेकिन उसे बाहर प्रदर्शित करना होता है| अगर तुम अपने जीवन को देखो तो पाओगे, तुम्हारे जीवन में ईश्वर अनेक रूपों में कार्य कर रहा है, इससे तुम्हारी आस्था मजबूत होगी| कोई भी उसके गुप्त हाथों को नहीं देख पाता| अधिकाँश लोगइन घटनाओं को स्वाभाविक और अवश्यम्भावी समझते हैं"

My fault

अपना दोष देखकर उसी को घोर दु:ख होता है,जो यह मान लेता है कि मेरे समान और कोई दोषी नहीं है। जब तक अपने समान तथा अपने से अधिक कोई दोषी दिखाई देता है, तब तक दोषयुक्त जीवन का गहरा दु:ख नहीं होता। यह नियम है कि गहरा दु;ख होनेसे जीवन बदल जाता है क्योंकि जब दु:ख सुख-लोलुपता को खा लेता है,तब सुख-भोग की कामना मिट जाती है,जिसके मिटते ही सभी दोष स्वत: मिट जाते हैं।

True Life quotes

Everything you do, use all ur strength and talent with which you are endowed. Initially, you might fail in this and you might encounter difficulties and suffering. But ultimately, you are bound to succeed and achieve victory and bliss. Each one of us should pay constant attention to our habits and to the traits of our character. Always remember the maxim, “Sathyameva Jayate” (Truth alone triumphs). Through your behaviour, through your way of life, you can realize the Truth and Paramatma (Eternal Self).

आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देखता है; निराशावादी व्यक्ति हर अवसर में एक आपदा देखता है